Literary Criticism - Hindi Alochana Ka Punah Path
हिन्दी आलोचना के इस पुन:पाठ में आलोचना को लेकर उठनेवाली भोली जिज्ञासाओं का अत्यन्त संवेदनशीलता से दिया गया उत्तर मौजूद है। हिन्दी में आलोचना के लिए ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ शब्द चलते हैं। इसको लेकर कभी-कभी भ्रम की स्थिति होती है। किताब की शुरूआत ही इस भ्रम के निराकरण से हुई है। ‘आलोचना’, ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ की व्युत्पत्ति और उनके बीच के बारीक अन्तर पर विचार किया गया है।आलोचना और रचना का सम्बन्ध, आलोचक के दायित्व, आलोचक के कार्य, आलोचना की ज़रूरत या उपयोगिता, आलोचना के मान ही नहीं बल्कि आलोचक बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह सब इस किताब में मिल जाएगा।यह पुस्तक तीन पर्वों में प्रस्तुत है। पहले पर्व में आलोचना की अवधारणा, आधुनिक हिन्दी आलोचना की आरम्भिक स्थिति, आलोचना के विविध प्रकार से लेकर हिन्दी आलोचना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा मौजूद है। पुस्तक केवल आलोचक और आलोचना का महिमा-मंडन ही नहीं करती, बल्कि उस महिमा को बनाए और बचाए रखने के गुण-सूत्रों की खोज भी करती है। पुस्तक के द्वितीय पर्व में हिन्दी ओलाचना के शिखरों; यथा—रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नरेन्द्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा और नामवर सिह आदि के अवदान का आकलन किया गया है। इसी प्रकार तीसरे पर्व में हिन्दी आलोचना के विविध सन्दर्भ जैसे आलोचना के सरोकार, नई सदी में हिन्दी आलोचना, आलोचना प्रक्रिया आदि पर विचार किया गया है।
Literary Criticism - Hindi Alochana Ka Punah Path
Hindi Alochana Ka Punah Path - by - Lokbharti Prakashan
Hindi Alochana Ka Punah Path - हिन्दी आलोचना के इस पुन:पाठ में आलोचना को लेकर उठनेवाली भोली जिज्ञासाओं का अत्यन्त संवेदनशीलता से दिया गया उत्तर मौजूद है। हिन्दी में आलोचना के लिए ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ शब्द चलते हैं। इसको लेकर कभी-कभी भ्रम की स्थिति होती है। किताब की शुरूआत ही इस भ्रम के निराकरण से हुई है। ‘आलोचना’, ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ की व्युत्पत्ति और उनके बीच के बारीक अन्तर पर विचार किया गया है।आलोचना और रचना का सम्बन्ध, आलोचक के दायित्व, आलोचक के कार्य, आलोचना की ज़रूरत या उपयोगिता, आलोचना के मान ही नहीं बल्कि आलोचक बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह सब इस किताब में मिल जाएगा।यह पुस्तक तीन पर्वों में प्रस्तुत है। पहले पर्व में आलोचना की अवधारणा, आधुनिक हिन्दी आलोचना की आरम्भिक स्थिति, आलोचना के विविध प्रकार से लेकर हिन्दी आलोचना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा मौजूद है। पुस्तक केवल आलोचक और आलोचना का महिमा-मंडन ही नहीं करती, बल्कि उस महिमा को बनाए और बचाए रखने के गुण-सूत्रों की खोज भी करती है। पुस्तक के द्वितीय पर्व में हिन्दी ओलाचना के शिखरों; यथा—रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ.
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- Model: RKP3215
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP3215
- ISBN: 0
- Total Pages: 298p
- Edition: 2019, Ed. 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 2019
₹ 595.00
Ex Tax: ₹ 595.00