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Literary Criticism - Bharat Itihas Aur Sanskriti

Literary Criticism - Bharat Itihas Aur Sanskriti
हिन्दी के सुविख्यात प्रगतिशील रचनाकार गजानन माधव मुक्तिबोध की बहुचर्चित और विवादित कृति। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा ‘भद्रता और नैतिकता’ के विरुद्ध ठहराई गई इस पुस्तक पर मध्य प्रदेश न्यायालय में मुक़दमा चला था, जिसका निर्णय था कि इसके 10 आपत्तिजनक अंशों को हटाकर ही इसे पुनः प्रकाशित किया जा सकता है।शासन की ओर से कुल दस आपत्तियाँ पुस्तक के विरुद्ध पेश की गईं। इनमें वे भी शामिल थीं जो आन्दोलनकर्ताओं ने चुन-चुनकर गिनाई थीं। इनमें से चार को आपत्तिजनक माना गया। विद्वान् न्यायाधीश ने अन्त में फ़ैसले की व्यवस्था देते हुए आदेश दिया कि आपत्तिजनक प्रसंगों को पुस्तक से ख़ारिज़ कर पुस्तक को पुनः प्रकाशित किया जा सकता है। यह घटना अप्रैल सन् 1963 की है।हाईकोर्ट के फ़ैसले के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए आपत्तिजनक प्रसंगों को पुस्तक से पृथक् करके ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ अपने समग्र रूप में प्रस्तुत की जा रही है। मुक्तिबोध की इच्छा थी कि कम-से-कम सामान्य रूप में ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ जनता के समक्ष रहे। प्रयत्न रहा है कि जिस स्वरूप में पुस्तक लिखी गई, हू-ब-हू उसी स्वरूप में वह पाठकों के सामने आए। समग्र पुस्तक का जो अनुक्रम मुक्तिबोध ने बनाया था, अध्यायों का क्रम भी उसी के अनुसार रखा गया है।इसके पाठ्य-पुस्तक-संस्करण की भूमिका में मुक्तिबोध ने लिखा है कि यह इतिहास की पुस्तक नहीं है—इस अर्थ में कि सामान्यतः इतिहास में राजाओं, युद्धों और राजनैतिक उलट-फेरों का जैसा विवरण रहता है, वैसा इसमें नहीं है।...युद्धों और राजवंशों के विवरण में न अटककर मैंने अपने समाज और उसकी संस्कृति के विकास-पथ को अंकित किया है।वस्तुतः मुक्तिबोध की यह कृति उनके उस सोच का परिणाम है, जो अपने समूचे इतिहास और जातीय परम्परा के यथार्थवादी मूल्यांकन से पैदा हुआ था।

Literary Criticism - Bharat Itihas Aur Sanskriti

Bharat Itihas Aur Sanskriti - by - Rajkamal Prakashan

Bharat Itihas Aur Sanskriti - हिन्दी के सुविख्यात प्रगतिशील रचनाकार गजानन माधव मुक्तिबोध की बहुचर्चित और विवादित कृति। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा ‘भद्रता और नैतिकता’ के विरुद्ध ठहराई गई इस पुस्तक पर मध्य प्रदेश न्यायालय में मुक़दमा चला था, जिसका निर्णय था कि इसके 10 आपत्तिजनक अंशों को हटाकर ही इसे पुनः प्रकाशित किया जा सकता है।शासन की ओर से कुल दस आपत्तियाँ पुस्तक के विरुद्ध पेश की गईं। इनमें वे भी शामिल थीं जो आन्दोलनकर्ताओं ने चुन-चुनकर गिनाई थीं। इनमें से चार को आपत्तिजनक माना गया। विद्वान् न्यायाधीश ने अन्त में फ़ैसले की व्यवस्था देते हुए आदेश दिया कि आपत्तिजनक प्रसंगों को पुस्तक से ख़ारिज़ कर पुस्तक को पुनः प्रकाशित किया जा सकता है। यह घटना अप्रैल सन् 1963 की है।हाईकोर्ट के फ़ैसले के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए आपत्तिजनक प्रसंगों को पुस्तक से पृथक् करके ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ अपने समग्र रूप में प्रस्तुत की जा रही है। मुक्तिबोध की इच्छा थी कि कम-से-कम सामान्य रूप में ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ जनता के समक्ष रहे। प्रयत्न रहा है कि जिस स्वरूप में पुस्तक लिखी गई, हू-ब-हू उसी स्वरूप में वह पाठकों के सामने आए। समग्र पुस्तक का जो अनुक्रम मुक्तिबोध ने बनाया था, अध्यायों का क्रम भी उसी के अनुसार रखा गया है।इसके पाठ्य-पुस्तक-संस्करण की भूमिका में मुक्तिबोध ने लिखा है कि यह इतिहास की पुस्तक नहीं है—इस अर्थ में कि सामान्यतः इतिहास में राजाओं, युद्धों और राजनैतिक उलट-फेरों का जैसा विवरण रहता है, वैसा इसमें नहीं है।.

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2226
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2226
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 320p
  • Edition: 2019, Ed. 6th
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 1985
₹ 795.00
Ex Tax: ₹ 795.00