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Literary Criticism - Aatmakatha Aur Upanyas

Literary Criticism - Aatmakatha Aur Upanyas
'...हमलोग यह तो बिना झिझक मान लेते हैं कि उपन्यास में आत्मकथात्मक तत्त्व उपस्थित रहता है और कोई भी पाठक जो लेखक के जीवन में रुचि रखता है, उसे इन अंशों को पहचानने में आनन्द आता है। वहीं आत्मकथा में कल्पना या औपन्यासिकता की चर्चा मात्र हमें विचलित कर देती है। हम मानते हैं कि आत्मकथा का मूल चरित्र उसका उपन्यास न होना है।...’’ ''...आत्मकथा में कल्पना का प्रवेश केवल लेखक के सामाजिक सरोकारों से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि वह कला की एक आवश्यक माँग भी है। आत्मकथाकार के लिए प्रमुख समस्या यह है कि एक तरफ़ उसे ईमानदारी के साथ आत्म के छुपे स्तरों को उजागर करना होता है, साथ ही उसी समय उसे रूप, संरचना, ध्वनि आदि साहित्यिक सौन्दर्य की कलात्मक पूर्ति का भी प्रयास करना होता है। यथार्थ और तथ्य अपने आप में कलात्मक नहीं होते हैं। उन्हें लेखक अपनी सर्जनशील कल्पना के साँचे में कच्ची सामग्री की तरह प्रयुक्त करता है।...’’—इसी पुस्तक से

Literary Criticism - Aatmakatha Aur Upanyas

Aatmakatha Aur Upanyas - by - Radhakrishna Prakashan

Aatmakatha Aur Upanyas - '.

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2342
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2342
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 168P
  • Edition: 2013, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2013
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00