इस पुस्तक में संकलित साक्षात्कार, सामयिक विषयों पर गम्भीर चिन्ताएँ तो हैं ही, साथ ही नन्द चतुर्वेदी के साहित्यिक सोच की अभिव्यक्ति भी है। वे कविता की परम्परागत बुनावट के साथ-साथ उसकी सामाजिकता और उससे जुड़े सरोकारों को भी जानते-पहचानते थे। ये सम्पूर्ण रूप से नन्द चतुर्वेदी की साहित्यिक चिन्ताओं और उ..
नामवर सिंह न सीमित अर्थों में साहित्यकार हैं, न आलोचक। इसके बावजूद वे इन साक्षात्कारों में मुख्यत: आलोचक के रूप में उभरते हैं। नामवर जी का आलोचक समाज में बातचीत करते हुए, वाद-विवाद-संवाद करते, प्रश्न-प्रतिप्रश्न करते सक्रिय रहता है और विचार, तर्क और संवाद की उस प्रक्रिया से गुज़रता है जो आलोचना की बु..
एक दिन दो बड़े मिल बैठे और बातें चल निकलीं—गुज़रे हुए ज़माने की, अगले ज़मानों की। वर्तमान तो बेशक हर पहलू से उन बातों में शामिल रहा। बातों का सिलसिला दशकों के आर-पार फैलता रहा—अपने समय को सीधे पढ़ने, समझने और लगातार ढीठ होते हुए युग की बग़ैरत निर्लज्ज आँखों में आँखें डालकर देखते रहने के संकल्प के साथ।ह..
एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालिय..
संगीत पर, शास्त्रीय संगीत पर हिन्दी में बहुत कम सामग्री प्रकाशित है : उसकी आलोचना और रसिकता की कोई व्यवस्थित परम्परा भी नहीं बन सकी। शास्त्रीय संगीत के रसिक सम्प्रदाय में अनेक विधाओं के लोग भी शामिल रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं इतिहासकार सुधीर चन्द्र जिनकी संगीत की समझ, संवेदना और व्याख्या को कई लो..
कुँवर नारायण हमारे समय के उन अप्रतिम लेखकों में से हैं, जिन्होंने हिन्दी कविता में ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय साहित्य में अपनी एक सशक्त और अमिट पहचान बनाई है।‘तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं’ पिछले एक दशक में कुँवर नारायण द्वारा विभिन्न लेखकों, कवियों, पत्रकारों को दी गई भेंटवार्ताओं का एक प्रतिनिधि चयन है..