उदयन वाजपेयी के ये निबन्ध हिन्दी में निबन्ध के ‘अनाख्यान-काल’ के प्रारम्भ का नान्दी-पाठ हैं। यह शब्द मदन सोनी का है जिसका इस्तेमाल उदयन ने ‘समय की छवियाँ’ शीर्षक निबन्ध में भी किया है किन्तु मदन सोनी और उदयन के प्रयोगों से मुअत्तर इस शब्द से मैं वह भी झलकाना चाहता हूँ जो ‘आदि-काल’, ‘रीति-काल’, ‘साठो..
“श्री अरविन्द के व्यक्तित्व में योगी, कवि और दार्शनिक, तीनों का समन्वय था और वे सब-के-सब एक ही लक्ष्य की ओर गतिशील थे।...उनके दर्शन और काव्य की जो वास्तविक शक्ति है, उनके भीतर जो प्रामाणिकता है, वह श्री अरविन्द की योगसाधना से आई है। योग के बल से ही उन्होंने सत्य को देखा और योग के बल से ही उन्हें यह ..
व्यक्तिगत निबन्ध में कुछ लोग विचारतत्त्व की ख़ास उपयोगिता नहीं देखते और वैसे लोगों को शायद मेरे निबन्धों में विचारतत्त्व दीखे भी न, परन्तु मैं अपनी आस्थाओं का अभिनिवेश रखे बिना कहीं भी नहीं रहना चाहता, निबन्धों में तो और भी नहीं। वैदिक सूक्तों के गरिमामय उद्गम से लेकर लोकगीतों के महासागर तक जिसमें अ..
‘चिन्तन के आयाम’ में युगदृष्टा रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चिन्तनपूर्ण, लोकोपयोगी बाईस निबन्धों को संगृहीत किया गया है। ये निबन्ध जहाँ एक तरफ़ दिनकर के चिन्तक–स्वरूप का साक्षात्कार करवाते हैं, वहीं पाठक के ज्ञान–क्षितिज का विस्तार भी करते हैं।दिनकर के ये निबन्ध—‘आदर्श मानव राम’, ‘लौकिकता और हिन्दू–धर्..
IAS/PCS परीक्षाओं के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक। अन्तिम रूप से चयनित होने में निबन्ध लेखन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। निबन्ध लेखन के सही तरीक़े क्या हैं? निबन्ध लेखन की सही रणनीति क्या होती है? निबन्ध के पेपर में ज़्यादा से ज़्यादा मार्क्स कैसे स्कोर किए जाएँ? टॉपर्स, कैसे लिखते हैं निबन्ध ..
‘धूपछाँह’ हिन्दी साहित्य में अपने ढंग की एक दुर्लभ कृति है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा समय-समय पर दूसरी भाषाओं की रचनाओं से प्रेरित हो किशोरों के लिए लिखी गई इन कविताओं में ओजस्विता तो है ही, प्रांजल प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और भाव-सम्प्रेषण भी अद्भुत है।
राष्ट्रकवि ने अपनी इन कविताओं ..
गांधी के जीवन और विरोधाभासों को देखें तो कहा जा सकता है कि उनका व्यक्तित्व और दर्शन एक सतत बनती हुई इकाई था। एक निर्माणाधीन इमारत जिसमें हर क्षण काम चलता था। उनका जीवन भी प्रयोगशाला था, मन भी। एक अवधारणा के रूप में गांधी उसी तरह एक सूत्र के रूप में हमें मिलते हैं जिस तरह मार्क्स; यह हमारे ऊपर है कि ..
‘हमारी सांस्कृतिक एकता' भाषणों और लेखों का संग्रह है। प्रायः सबका विषय भाषा और संस्कृति है। पुस्तक अपने विवेचन-विश्लेषण में दिनकर जी के गहन चिन्तन का द्योतक है। राष्ट्रकवि ने अपनी इस पुस्तक में भारत की विविधता में एकता पर विचार करते हुए भाषा और संस्कृति की भूमिका को वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक क..
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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 111p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1..
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसे नेताओं की कमी बहुत खलती है जो सत्ता की तिकड़मों के बजाय समाज और देश की वास्तविक चिन्ताओं को लेकर न सिर्फ़ सोचने की प्रवृत्ति रखते हों, बल्कि उनमें तमाम परिस्थितियों को एक व्यापक नज़रिए के साथ देखने की क्षमता भी हो।भारतीय राजनीति में एकाधिक व्यक्तित्व ऐसे रहे हैं ज..
‘कब्रिस्तान में पंचायत’ कवि केदारनाथ सिंह की एक गद्य कृति है—एक कवि के गद्य का एक विलक्षण नमूना—जिसमें उसकी सोच, अनुभव और उसके पूरे परिवेश की कुछ मार्मिक छवियाँ मिलेंगी और बेशक वे चिन्ताएँ भी जो सिर्फ़ एक लेखक की नहीं हैं। पुस्तक के नाम में जो व्यंग्यार्थ है, वह हमारे समय के गहरे उद्वेलन की ओर संकेत..
प्रस्तुत संग्रह ‘कदम की फूली डाल’ में शतकिञ्जल्कित कुसुम को अक्षय सौन्दर्य तथा सौभाग्य की पूर्णता दर्शाई गई है जिसमें इसकी आराधना तीन सोपानों में संकलित है। पहला है भ्रमण, जिसके अन्तर्गत विन्ध्यभूमि के सौन्दर्य-दर्शन से आकलित अनुभव संगृहीत हैं, दूसरा है चिन्तन, जिसमें साहित्य के कुछ तात्कालिक प्रश्न..