Poetry - Ishwar Aur Bazar
आदिवासी जन-जीवन पर मँडराते सभ्यता-प्रेषित ख़तरों को पहचानना, सीधे-सरल ढंग से उन्हें शब्दों में अंकित करना और नागर केन्द्रों से जंगलों-पहाड़ों की तरफ़ बढ़ते विकास की आक्रामक मुद्राओं का सशक्त प्रतिवाद गढ़ना जसिंता केरकेट्टा की कविताओं की विशेषताएँ रही हैं। उनकी कविताएँ अपनी सहज और संवादपरक मुद्रा में आदिवासी समाज की पीड़ाओं को समग्रता के साथ हम तक पहुँचाती रही हैं।इन कविताओं में उनके इस मूल स्वर के साथ कुछ और भी जुड़ा है। संग्रह में संकलित कई कविताएँ ऐसी हैं जो शोषण के चालाक षड्यंत्रों में ईश्वर की अवधारणा और असहाय जन-मानस में उसके भय की भूमिका को चीन्हती हैं। भीतर और बाहर की कई जकड़नों में धर्म, ईश्वर और आस्था ने जिस तरह मनुष्य-विरोधी ताक़त के रूप में काम किया है, वह बृहत् भारतीय समाज की विडम्बना है; लेकिन आदिवासी साधनहीनता पर उनका प्रभाव और भी घातक होता है। ‘मज़दूर जब अपने अधिकार के लिए उठे/तो कुछ ईश्वर भक्तों ने उनसे/हाथ जोड़कर प्रार्थना करने को कहा।’ और ‘धीरे-धीरे हर हिंसा हमारे लिए/ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा बन गई।’ इस विडम्बना को ये कविताएँ हर संभव कोण से पकड़ने का प्रयास करती हैं।आधुनिक शहरी सभ्यता के सम्पर्क से आदिवासी जीवन शैली में दिखाई देनेवाली विरूपताओं की तरफ़ भी जसिंता की नज़र गई है जिससे पता चलता है कि विकास का हमला सिर्फ़ जंगल के संसाधनों और वहाँ के निवासियों के दोहन तक ही सीमित नहीं है, वह उनके सांस्कृतिक बोध को भी विकृत कर रहा है।जल, जंगल और आदिवासी जीवन से बाहर देश के सामान्य हालात भी इस संग्रह की कविताओं में जगह-जगह झाँकते दिखाई देते हैं। सत्ता का तानाशाही मिज़ाज हो या अपने ही देश की सैनिक ताक़त को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, कुछ भी कवि की निगाह से नहीं चूकता। यह संकलन निश्चय ही जसिंता की रचना-यात्रा का अगला चरण है।
Poetry - Ishwar Aur Bazar
Ishwar Aur Bazar - by - Rajkamal Prakashan
Ishwar Aur Bazar -
- Stock: 10
- Model: RKP695
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP695
- ISBN: 0
- Total Pages: 200p
- Edition: 2022, Ed. 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back, Paper Back
- Year: 2022
₹ 200.00
Ex Tax: ₹ 200.00