Menu
Your Cart

Drama Studies Books

Drama Studies Books
‘पहला रंग’ के बाद चर्चित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर की दूसरी पुस्तक ‘रंग कोलाज’ रंगमंच के कुछ अनिवार्य सवालों पर उत्तेजक बहस छेड़ती है। अभिनेता, निर्देशक, नाट्य रचना, नुक्कड़ नाटक,  कहानी मंचन के बहाने रंगमंच के बदलते स्वरूप और समीकरणों को कई स्तरों पर परखने की कोशिश की गई है। इसमें कुछ सैद्धान्तिक ..
₹ 195.00
Ex Tax:₹ 195.00
आधुनिक भारतीय रंगमंच के वैचारिक आधार क्या हैं—उसकी अपार विविधता का फलितार्थ क्या है—उसमें आधुनिकता और परम्परा के बीच कैसी बतकही और आवाजाही होती रही है आदि ऐसे प्रश्न हैं जो आधुनिक भारतीय रंगदृष्टि को विन्यस्त करने और उसे समझने के लिए ज़रूरी हैं। हमारी उत्तर-औपनिवेशिक जहनियत की यह विडम्बना है कि ऐसे ..
₹ 450.00
Ex Tax:₹ 450.00
रंगमंच का जनतंत्र ऐसी रचनाओं का संकलन है, जो रंगमंच की जनतांत्रिकता को गहराई से रेखांकित करती हैं। यह अतीत और वर्तमान की यायावरी है। इस यात्रा में समय, समाज, जीवन और रंगमंच के कई पहलू उद्घाटित होते हैं। इन रचनाओं का भूगोल काफ़ी विस्तृत है। यहाँ संस्कृत रंगमंच की महान परम्परा से लेकर आज के रंगमंच तक ..
₹ 895.00
Ex Tax:₹ 895.00
देवेन्द्र राज अंकुर ने अपनी इस पुस्तक में रंगमंच को सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टि से देखा है। यह पुस्तक रंगमंच के सौन्दर्यशास्त्र को व्याख्यायित करनेवाली हिन्दी में अपने ढंग की पहली पुस्तक है।यह सच है कि हिन्दी रंगमंच के प्रसिद्ध आलोचक नेमिचन्द्र जैन ने नाट्य-आलोचना पर केन्द्रित अपनी कृतियों में नाटक क..
₹ 450.00
Ex Tax:₹ 450.00
हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का ए..
₹ 600.00
Ex Tax:₹ 600.00
‘सातवाँ रंग’ देवेन्द्र राज अंकुर की निबन्ध पुस्तकों की शृंखला में सातवीं कड़ी है। उनके निबन्धों ने हिन्दी थिएटर के सवालों को, पत्र–पत्रिकाओं और फिर पुस्तकों के माध्यम से आम हिन्दी पाठक के सरोकारों से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया है। अपनी व्यावहारिक दृष्टि के चलते उनके निबन्धों ने थिएटर–जगत के अध्येता..
₹ 350.00
Ex Tax:₹ 350.00
महाकवि कालिदास कृत ‘विक्रमोर्वशी’ (पराक्रम से विजित उर्वशी) पाँच अंकों का त्रोटक है। संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुसार त्रोटक एक ऐसी नाट्य- विधा है जिसमें शृंगारिकता अधिक मात्रा में होती है और जिसके पात्रों में दैवी एवं मानुषी पात्रों का सम्मिश्रण होता है। ‘विक्रमोर्वशी’ की नायिका उर्वशी एक अप्सरा है ज..
₹ 125.00
Ex Tax:₹ 125.00
Zarurat Isi Ki Thee
Free 2-3 Days
औद्योगिकीकरण ने हमारे जीवन को एक तरफ़ सुविधा-सम्पन्न बनाया तो दूसरी तरफ़ कई सामाजिक विकृतियों और विद्रूपताओं को भी बढ़ावा दिया। ऐसी ही एक विकृति है—बालश्रम, जो तमाम घोषणाओं और क़ानूनी कसरतों के बावजूद आज भी हमारे सामने भयावह रूप में उपस्थित है।ग़रीबी की कोख से जन्मी इस अमानवीय प्रथा को राजनेता और ..
₹ 0.00
Ex Tax:₹ 0.00
Showing 25 to 32 of 32 (3 Pages)