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Awarded Books - Dilli Mera Pardes

Awarded Books - Dilli Mera Pardes
‘दिल्ली मेरा परदेस’ रघुवीर सहाय की डायरी पुस्तक है जो ‘धर्मयुग’ में 1960 से 63 तक ‘दिल्ली की डायरी’ नामक स्तम्भ के रूप में प्रकाशित हुई थी। तब रघुवीर सहाय ‘सुन्दरलाल’ के नाम से यह स्तम्भ लिखा करते थे जो काफ़ी चर्चित रहा। इसके ज़रिए रघुवीर सहाय की कोशिश यह थी कि इसमें दिल्ली के जीवन पर टिप्पणियाँ हों और ऐसी हों कि उनका दिल्ली के बाहर भी कोई अर्थ हो सके।ये तीन वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण थे, क्योंकि नेहरू के राजनीतिक जीवन के वे अन्तिम वर्ष थे। 1964 में उनके देहान्त के पहले राष्ट्रीय जीवन का चरित्र एक संकट से गुज़र रहा था। जिन मान्यताओं के लिए नेहरू कहते और करते थे, वे उनके बाद भी बची रहेंगी या नहीं, यह प्रश्न एक सांस्कृतिक प्रश्न बन गया था। ‘दिल्ली की डायरी’ में नेहरू के जीवन के अन्तिम चार वर्षों में से तीन की स्पष्ट झलक मिलती है।इस पुस्तक का नाम ‘दिल्ली मेरा परदेस’ क्यों है, इसके बारे में खुद रघुवीर सहाय लिखते हैं कि, ‘दिल्ली मेरा देस नहीं है और दिल्ली किसी का देस नहीं हो सकती। उसकी अपनी संस्कृति नहीं है। यहाँ के निवासियों के सामाजिक आचरण को कभी इतना स्थिर होने का अवसर मिल भी नहीं सकता कि वह एक संस्कृति का रूप ग्रहण करे। अधिक से अधिक वह सभ्यता का, बल्कि उसके अनुकरणों का एक केन्द्र हो सकती है। सो वह है। ...मैं 1951 की गर्मियों में दिल्ली आया था। तब से इस शहर के कुछ हिस्से मेरी निगाह में उतने ही ख़ूबसूरत हैं। ...ज़‍िन्दगी में जो दो काम किए हैं—अख़बारनवीसी और कविता—उन दोनों की सबसे अच्छी स्मृतियाँ भी यहीं की हैं। और मुफ़लिसी की मस्तियाँ और पस्तियाँ भी। परन्तु ये दिल्ली की सबसे बड़ी देन नहीं हैं। सबसे बड़ी देन तो एक परदेसीपन है : एक अजब तरह का स्निग्ध एकान्त जिसमें जब चाहो तब भीतर चले जाओ, चाहे कितनी ही भीड़ में क्यों न हो, और जिसमें से जब चाहो ज़रा देर के लिए बाहर आ जाओ, कोई देखेगा नहीं।’‘दिल्ली मेरा परदेस’ गद्य में उस रचनात्मक अनुभव की पुस्तक है जो अपनी शैली में सुन्दर तो है ही, सामाजिक-राजनीतिक चेतना में सहज सम्प्रेष्य और धारदार भी है। कोई डेढ़ सौ किस्तों में से चुनकर पुस्तक में शामिल अंश उस दस्तावेज़ की तरह हैं जिनके सवालों से टकराए बिना अपने वर्तमान को ठीक से नहीं समझा जा सकता, न ही भविष्य की तरफ़ दूर तक देखा जा सकता है।

Awarded Books - Dilli Mera Pardes

Dilli Mera Pardes - by - Rajkamal Prakashan

Dilli Mera Pardes - ‘दिल्ली मेरा परदेस’ रघुवीर सहाय की डायरी पुस्तक है जो ‘धर्मयुग’ में 1960 से 63 तक ‘दिल्ली की डायरी’ नामक स्तम्भ के रूप में प्रकाशित हुई थी। तब रघुवीर सहाय ‘सुन्दरलाल’ के नाम से यह स्तम्भ लिखा करते थे जो काफ़ी चर्चित रहा। इसके ज़रिए रघुवीर सहाय की कोशिश यह थी कि इसमें दिल्ली के जीवन पर टिप्पणियाँ हों और ऐसी हों कि उनका दिल्ली के बाहर भी कोई अर्थ हो सके।ये तीन वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण थे, क्योंकि नेहरू के राजनीतिक जीवन के वे अन्तिम वर्ष थे। 1964 में उनके देहान्त के पहले राष्ट्रीय जीवन का चरित्र एक संकट से गुज़र रहा था। जिन मान्यताओं के लिए नेहरू कहते और करते थे, वे उनके बाद भी बची रहेंगी या नहीं, यह प्रश्न एक सांस्कृतिक प्रश्न बन गया था। ‘दिल्ली की डायरी’ में नेहरू के जीवन के अन्तिम चार वर्षों में से तीन की स्पष्ट झलक मिलती है।इस पुस्तक का नाम ‘दिल्ली मेरा परदेस’ क्यों है, इसके बारे में खुद रघुवीर सहाय लिखते हैं कि, ‘दिल्ली मेरा देस नहीं है और दिल्ली किसी का देस नहीं हो सकती। उसकी अपनी संस्कृति नहीं है। यहाँ के निवासियों के सामाजिक आचरण को कभी इतना स्थिर होने का अवसर मिल भी नहीं सकता कि वह एक संस्कृति का रूप ग्रहण करे। अधिक से अधिक वह सभ्यता का, बल्कि उसके अनुकरणों का एक केन्द्र हो सकती है। सो वह है। .

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  • Stock: 10
  • Model: RKP204
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP204
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 152p
  • Edition: 2019, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2019
₹ 395.00
Ex Tax: ₹ 395.00