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Autobiography - Murdahiya

Autobiography - Murdahiya
‘मुर्दहिया’ हमारे गाँव धरमपुर (आज़मगढ़) की बहुद्देशीय कर्मस्थली थी। चरवाही से लेकर हरवाही तक के सारे रास्ते वहीं से गुज़रते थे। इतना ही नहीं, स्कूल हो या दुकान, बाज़ार हो या मन्दिर, यहाँ तक कि मज़दूरी के लिए कलकत्ता वाली रेलगाड़ी पकड़ना हो, तो भी मुर्दहिया से ही गुज़रना पड़ता था। हमारे गाँव की ‘जिओ-पॉलिटिक्स’ यानी ‘भू-राजनीति’ में दलितों के लिए मुर्दहिया एक सामरिक केन्द्र जैसी थी। जीवन से लेकर मरन तक की सारी गतिविधियाँ मुर्दहिया समेट लेती थी। सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुर्दहिया मानव और पशु में कोई फ़र्क़ नहीं करती थी। वह दोनों की मुक्तिदाता थी। विशेष रूप से मरे हुए पशुओं के मांसपिंड पर जूझते सैकड़ों गिद्धों के साथ कुत्ते और सियार मुर्दहिया को एक कला-स्थली के रूप में बदल देते थे। रात के समय इन्हीं सियारों की ‘हुआँ-हुआँ’ वाली आवाज़ उसकी निर्जनता को भंग कर देती थी। हमारी दलित बस्ती के अनगिनत दलित हज़ारों दु:ख-दर्द अपने अन्‍दर लिए मुर्दहिया में दफ़न हो गए थे। यदि उनमें से किसी की भी आत्मकथा लिखी जाती, उसका शीर्षक ‘मुर्दहिया’ ही होता।मुर्दहिया सही मायनों में हमारी दलित बस्ती की ज़‍िन्‍दगी थी।ज़माना चाहे जो भी हो, मेरे जैसा कोई अदना जब भी पैदा होता है, वह अपने इर्द-गिर्द घूमते लोक-जीवन का हिस्सा बन ही जाता है। यही कारण था कि लोकजीवन हमेशा मेरा पीछा करता रहा। परिणामस्वरूप मेरे घर से भागने के बाद जब ‘मुर्दहिया’ का प्रथम खंड समाप्त हो जाता है, तो गाँव के हर किसी के मुख से निकले पहले शब्द से तुकबन्‍दी बनाकर गानेवाले जोगीबाबा, लक्कड़ ध्वनि पर नृत्यकला बिखेरती नटिनिया, गिद्ध-प्रेमी पग्गल बाबा तथा सिंघा बजाता बंकिया डोम जैसे जिन्दा लोक पात्र हमेशा के लिए गायब होकर मुझे बड़ा दु:ख पहुँचाते हैं। —भूमिका से

Autobiography - Murdahiya

Murdahiya - by - Rajkamal Prakashan

Murdahiya -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP276
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP276
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 184p
  • Edition: 2018, Ed. 4th
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back, Paper Back
  • Year: 2010
₹ 199.00
Ex Tax: ₹ 199.00