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Autobiography - Kareeb Se

Autobiography - Kareeb Se
ज़ोहरा सहगल की यह आत्मकथा मंच और फ़िल्मी पर्दे पर उनकी लगभग सौ साल लम्बी मौजूदगी का एक बड़ा फलक पेश करती है। भारत और इंग्लैंड दोनों जगह समान रूप से सक्रिय रहीं ज़ोहरा सहगल इसमें अपने बचपन से लेकर अब तक की ज़िन्दगी का दिलचस्प ख़ाका खींचती हैं।1930 में ज़ोहरा आपा ड्रेस्डेन, जर्मनी में मैरी विगमैन के डांस-स्कूल में आधुनिक नृत्य का प्रशिक्षण लेने के लिए गईं। नवाबों की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आईं एक भारतीय युवती के लिए यह फ़ैसला अस्वाभाविक था। लेकिन कुछ अलग हटकर करने का नाम ज़ोहरा सहगल है। 1933 में वे वापस आईं और 1935 में उदयशंकर की अल्मोड़ा स्थित प्रसिद्ध नाट्य दल से जुड़ीं। कामेश्वर सहगल भी इसी कम्पनी में थे जिनसे 1942 में उनकी शादी हुई।इस दौर के अपने सफ़र के बाद ज़ोहरा सहगल इस आत्मकथा में पृथ्वी थिएटर और पृथ्वीराज कपूर से जुड़े अपने लम्बे और गहरे अनुभव के दिनों का लेखा-जोखा देती हैं। पृथ्वी थिएटर में अपने चौदह साल उन्होंने भारतीय रंगमंच के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के बीचोबीच बिताए। इप्टा का बनना और फिर निष्क्रिय हो जाना भी उन्होंने नज़दीक से देखा। इस पूरे दौर का बहुत पास से लिया गया जायज़ा इस आत्मकथा में शामिल है।इसके बाद इंग्लैंड में बीबीसी टेलीविज़न, ब्रिटिश ड्रामा लीग, और अनेक धारावाहिकों तथा फ़िल्मों के साथ अभिनेत्री के रूप में उनका जुड़ाव, और इस दौरान ब्रिटिश रंगमंच की महान हस्तियों से उनकी मुलाक़ातों के विवरण, ‘मुल्ला नसीरुद्दीन’ जैसे भारतीय धारावाहिकों में काम करने के अनुभव, इस आत्मकथा को एक ख़ास दिलचस्पी से पढ़े जाने की दावत देते हैं। साथ में ज़ोहरा आपा का चुटीला अन्दाज़, उसके तो कहने ही क्या!

Autobiography - Kareeb Se

Kareeb Se - by - Rajkamal Prakashan

Kareeb Se - ज़ोहरा सहगल की यह आत्मकथा मंच और फ़िल्मी पर्दे पर उनकी लगभग सौ साल लम्बी मौजूदगी का एक बड़ा फलक पेश करती है। भारत और इंग्लैंड दोनों जगह समान रूप से सक्रिय रहीं ज़ोहरा सहगल इसमें अपने बचपन से लेकर अब तक की ज़िन्दगी का दिलचस्प ख़ाका खींचती हैं।1930 में ज़ोहरा आपा ड्रेस्डेन, जर्मनी में मैरी विगमैन के डांस-स्कूल में आधुनिक नृत्य का प्रशिक्षण लेने के लिए गईं। नवाबों की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आईं एक भारतीय युवती के लिए यह फ़ैसला अस्वाभाविक था। लेकिन कुछ अलग हटकर करने का नाम ज़ोहरा सहगल है। 1933 में वे वापस आईं और 1935 में उदयशंकर की अल्मोड़ा स्थित प्रसिद्ध नाट्य दल से जुड़ीं। कामेश्वर सहगल भी इसी कम्पनी में थे जिनसे 1942 में उनकी शादी हुई।इस दौर के अपने सफ़र के बाद ज़ोहरा सहगल इस आत्मकथा में पृथ्वी थिएटर और पृथ्वीराज कपूर से जुड़े अपने लम्बे और गहरे अनुभव के दिनों का लेखा-जोखा देती हैं। पृथ्वी थिएटर में अपने चौदह साल उन्होंने भारतीय रंगमंच के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के बीचोबीच बिताए। इप्टा का बनना और फिर निष्क्रिय हो जाना भी उन्होंने नज़दीक से देखा। इस पूरे दौर का बहुत पास से लिया गया जायज़ा इस आत्मकथा में शामिल है।इसके बाद इंग्लैंड में बीबीसी टेलीविज़न, ब्रिटिश ड्रामा लीग, और अनेक धारावाहिकों तथा फ़िल्मों के साथ अभिनेत्री के रूप में उनका जुड़ाव, और इस दौरान ब्रिटिश रंगमंच की महान हस्तियों से उनकी मुलाक़ातों के विवरण, ‘मुल्ला नसीरुद्दीन’ जैसे भारतीय धारावाहिकों में काम करने के अनुभव, इस आत्मकथा को एक ख़ास दिलचस्पी से पढ़े जाने की दावत देते हैं। साथ में ज़ोहरा आपा का चुटीला अन्दाज़, उसके तो कहने ही क्या!

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  • Stock: 10
  • Model: RKP1127
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP1127
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 244p
  • Edition: 2013, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2013
₹ 495.00
Ex Tax: ₹ 495.00