Play - Kharashein
सन् 1947 में जब मुल्क आज़ाद हुआ तो इस आज़ादी के साथ-साथ आग और लहू की एक लकीर ने मुल्क को दो टुकड़ों में तकसीम कर दिया। यह बँटवारा सिर्फ़ मुल्क का ही नहीं बल्कि दिलों का, इंसानियत का और सदियों की सहेजी गंगा-जमनी तहज़ीब का भी हुआ। साम्प्रदायिकता के शोले ने सब कुछ जलाकर ख़ाक कर दिया और लोगों के दिलों में हिंसा, नफ़रत और फ़िरक़ापरस्ती के बीज बो दिए। इस फिर कावाराना वहशत ने वतन और इंसानियत के ज़िस्म पर अनगिनत ख़राशें पैदा कीं। बार-बार दंगे होते रहे। समय गुज़रता गया लेकिन ये ज़ख़्म भरे नहीं बल्कि और भी बर्बर रूप में हमारे सामने आए। ज़ख़्म रिसता रहा और इंसानियत कराहती रही...लाशें ही लाशें गिरती चली गईं।‘ख़राशें’ मुल्क के इस दर्दनाक क़िस्से को बड़े तल्ख़ अन्दाज़़ में हमारे सामने रखती है। लब्धप्रतिष्ठ फ़िल्मकार और अदीब गुलज़ार की कविताओं और कहानियों की यह रंगमंचीय प्रस्तुति इन दंगों के दौरान आम इंसान की चीख़ों-कराहों के साथ पुलिसिया ज़ुल्म तथा सरकारी मीडिया के झूठ का नंगा सच भी बयाँ करती है। यह कृति हमारी संवेदनशीलता को कुरेदकर एक सुलगता हुआ सवाल रखती है कि इन दुरूह परिस्थितियों में यदि आप फँसे तो आपकी सोच और निर्णयों का आधार क्या होगा—मज़हब या इंसानियत?प्रवाहपूर्ण भाषा और शब्द-प्रयोग की जादूगरी गुलज़ार की अपनी ख़ास विशेषता है। अपने अनूठे अन्दाज़़ के कारण यह कृति निश्चय ही पाठकों को बेहद पठनीय लगेगी।
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Kharashein - by - Radhakrishna Prakashan
Kharashein - सन् 1947 में जब मुल्क आज़ाद हुआ तो इस आज़ादी के साथ-साथ आग और लहू की एक लकीर ने मुल्क को दो टुकड़ों में तकसीम कर दिया। यह बँटवारा सिर्फ़ मुल्क का ही नहीं बल्कि दिलों का, इंसानियत का और सदियों की सहेजी गंगा-जमनी तहज़ीब का भी हुआ। साम्प्रदायिकता के शोले ने सब कुछ जलाकर ख़ाक कर दिया और लोगों के दिलों में हिंसा, नफ़रत और फ़िरक़ापरस्ती के बीज बो दिए। इस फिर कावाराना वहशत ने वतन और इंसानियत के ज़िस्म पर अनगिनत ख़राशें पैदा कीं। बार-बार दंगे होते रहे। समय गुज़रता गया लेकिन ये ज़ख़्म भरे नहीं बल्कि और भी बर्बर रूप में हमारे सामने आए। ज़ख़्म रिसता रहा और इंसानियत कराहती रही.
- Stock: 10
- Model: RKP3090
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP3090
- ISBN: 0
- Total Pages: 87p
- Edition: 2016, Ed, 5th
- Book Language: English
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 2003
₹ 225.00
Ex Tax: ₹ 225.00