प्रेमचन्द ने पहली बार इस सत्य को पहचाना कि उपन्यास सोद्देश्य होने चाहिए अर्थात् उपन्यास या कोई भी साहित्यिक विधा मनोरंजन के लिए नहीं होती वरन् वह मानव-जीवन को शक्ति और सुन्दरता प्रदान करनेवाली सोद्देश्य रचना होती है।प्रेमचन्द में यथार्थ के जिन दो आयामों (सामाजिक और मनोवैज्ञानिक) का उद्घाटन हुआ, वे..
आठवें दशक की समाप्ति के साथ हिन्दी उपन्यास को लेकर जिस नई गहमागहमी का दौर शुरू हुआ था, वह आज परिपक्वता प्राप्त कर चुका है। ‘नौकर की कमीज़’ से लेकर ‘आख़िरी कलाम’ तक विस्तृत हिन्दी उपन्यास का लगभग तीन दशकों का यह सफ़र भारतीय समाज के साथ उपन्यास के जनतांत्रिकरण का भी दौर रहा है।मध्यवर्गीय उभार, साम्प्..
भगतिंसह को यदि मार्क्सवादी ही कहना हो, तो एक स्वयंचेता या स्वातंत्र्यचेता मार्क्सवादी कहा जा सकता है। रूढ़िवादी मार्क्सवादियों की तरह वे हिंसा को क्रान्ति का अनिवार्य घटक या साधन नहीं मानते। वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं—‘क्रान्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहि..
हर तरह के शोषण के प्रति विद्रोह दरअसल लेखक के ख़मीर में उसकी ख़ुदादाद सलाहियतों के साथ गुँथा होता है। उसका विद्रोह हर उस बन्धन से होता है जो इंसान के दु:ख का कारण बने। वह बाहर की भौतिक दुनिया से ज़्यादा इंसान के अन्दर फैले भावना के संसार को समझने में डूबा होता है और उसी की वकालत करता है और अपने लेखन..
पिछले पन्द्रह-बीस साल से जो माहौल बन रहा था, उससे यह ध्वनि निकल रही थी कि मध्यपूर्वी देशों को सख़्त ज़रूरत है बदलाव की, शिक्षा की और लोकतंत्र की। मगर जो बात छुपी हुई थी, इस प्रचार-बिगुल के पीछे कि वहाँ के बुद्धिजीवियों, रचनाकारों, कलाकारों और आम आदमी पर क्या गुज़र रही है और इन देशों के हाकिम महान शक..
उर्दू भाषा का जन्म हिन्दुस्तान में हुआ। मातृभाषा जो भी हो मगर लिखनेवाले उर्दू में लिखते रहे। इसलिए जहाँ उर्दू का विस्तार बढ़ा, वहीं पर उसके पढ़नेवालों की दिमाग़ी फ़िज़ा भी रौशन और खुली बनी। भाषा पर किसी धर्म और विचारधारा की हुकूमत नहीं हो सकती है, जो ऐसा सोचते हैं वे अपना ही नहीं, अपनी भाषा के विकास ..
इस संग्रह में तीन महत्त्वपूर्ण नाटकों के अनुवाद दिए जा रहे हैं। जिनमें नाटककारों के अपने व्यक्तित्व एवं जीवन की गहरी छाप है। उस भाषा देश और समाज की परम्पराएँ तो झलकती हैं, साथ ही उनकी समस्याएँ, कठिनाइयाँ, दु:ख और सुख की भी सूचनाएँ मिलती हैं।रचनाकारों और पाठकों की अपनी निजी जीवन-दृष्टि, अनुभव, पसन्..
साहित्य की दुनिया में उत्कृष्ट रचनाओं की कमी नहीं है। उसमें से अनुवाद के लिए कुछ भी उठाना जितना सरल है, उतना ही कठिन भी! ख़ासकर तब जब योजना किसी एक देश तक सीमित न होकर कई देशों के बीच फैली हो।उपन्यास 'आधी रात का मुक़दमा’ का अनुवाद मैंने अंग्रेज़ी से किया। कहानी कहने का अन्दाज़ जटिल था। कुछ शब्द म..
उर्दू वाले कहानियों को सीमा में नहीं बाँधते हैं, वह हर उस कहानी को उर्दू की समझते हैं जो उर्दू में लिखी गई हो, चाहे लेखक कहीं का हो। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान में रहनेवाले, और बाहर के मुल्कों में बसनेवाले उर्दू अदीब जिनकी मूल धरती हिन्दुस्तान रही है चाहे उन्होंने विश्व के किसी कोने में बैठकर कहानी लिखी ..
पारसी थिएटर हमारी बहुमूल्य विरासत है, इसलिए हमें इसकी हिफ़ाज़त भी करनी है। ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ में पारसी नाटकों के मंचन की परम्परा रही है। यह भी एक सत्य है कि उत्तर भारत के सभी नगरों और महानगरों में रंगकर्मी इस परम्परा से जुड़ने पर सुख और सन्तोष का अनुभव करते हैं। शायद यही कारण है कि देश-भर ..
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।'अंधविश्वास उन्मूलन : विचार' पु..
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।'अंधविश्वास उन्मूलन : आचार' पुस..