भारत का स्वाधीनता आन्दोलन जिस प्रकार से लड़ा गया उसमें आए अनेक उतार-चढ़ाव और संघर्ष हमें प्राचीन ‘महाभारत’ की याद दिलाते हैं। ‘कथा विराट’ के 18 अध्यायों में भारतीयों द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े गए आधुनिक महाभारत की वृहद् कथा बेहद दिलचस्प और तथ्यपरक ढंग से शृंखलाबद्ध है। यह सन् 1915 से 1950 तक ..
नानाजी ने समाजसेवा को नया आयाम दिया, एक नया रूप, जिसमें उन्होंने जनसाधारण की पहल और उसकी सहभागिता को प्रमुख स्थान दिया। गोंडा, बीड़, चित्रकूट व नागपुर प्रकल्पों के माध्यम से उन्होंने देश के सामने विकास का ऐसा मॉडल खड़ा किया, जो देशानुकूल होते हुए भी समयानुकूल था। सचमुच में वह पं. दीनदयाल उपाध्याय द्..
जनसंघ की स्थापना के साथ ही उसमें पदार्पण करने वाले नानाजी देशमुख शायद स्वभाव से ही राजनीतिज्ञ थे। लगभग तीन दशक तक नानाजी देश के राजनैतिक पटल पर छाए रहे। जनसंघ में और उससे बाहर भी। पं. दीनदयाल उपाध्याय के पश्चात् जनसंघ में उनकी छवि एक अद्वितीय संगठक की बनी और पंडितजी के रहते हुए भी देश की राजनीति में..
एऋषि-तुल्य व्यक्ति, जिसने अपना संपूर्ण जीवन दीन-दुखियों की सेवा, मानव जीवन को सार्थक बनाने, भारतीय मूल्यों के संदर्भ में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने, व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को एकात्म करने, देश की राजनीति को नई दिशा देने, विकास का देशानुकूल, परंतु युगानुकूल प्रतिमान खड़ा करने में समर्पित कर दिया, ऐसे ना..
राष्ट्र पुरुष के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्रतिमूर्ति थे नानाजी। उनके विचारों के माध्यम से उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का आईना बने हैं इस खंड में दिए गए साक्षात्कार। साक्षात् नानाजी ही जैसे आज की ज्वलंत समस्याओं पर सटीक टिप्पणियाँ करते हमारे सम्मुख बैठे हैं। केवल जिज्ञासाएँ ही शांत नही..
एक समरस, संस्कारित, सुदृढ़, सबल, सशक्तीकृत समाज, नानाजी के विचारों व कर्तृत्व के केंद्र में था। सामाजिक जीवन में परस्पर पूरकता व सहजीवन नानाजी के लिए सामाजिक पुनर्रचना के मूलमंत्र थे। देशज मूल्यों के प्रति नानाजी का आग्रह, वर्तमान युग को समझने की उनकी ललक और दोनों में तालमेल बिठाने का जज्बा, नानाजी ..
शिक्षा के बारे में नानाजी की कल्पना आम धारणाओं से बहुत भिन्न थी। किताबी शिक्षा को वे व्यावहारिक व मानव-प्रदत्त शिक्षा के सामने गौण मानते थे। उनके लिए शिक्षा व संस्कार एक-दूसरे के पूरक थे; एक-दूसरे के बिना अधूरे। उनका मत था कि शिक्षा व संस्कार की प्रक्रिया गर्भाधान से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवनपर्..