मानक हिन्दी इतने बड़े क्षेत्र में और इतनी अधिक जनसंख्या द्वारा व्यवहृत की जा रही है कि उसका एकमेव राष्ट्रीय स्वरूप निर्मित होना और उसका स्थिर रह पाना असम्भव है। कारणदो हैं—एक तो उसके प्रयोक्ताओं पर उनकी मातृबोलियों का व्याघात और दूसरे उनको दी जानेवाली समुचित शिक्षा का अभाव और अशुद्धियाँ (प्रयोगों ..
‘कविता और शुद्ध कविता’ ‘दिनकर’ के साहित्यिक निबन्धों का ही संग्रह नहीं है, बल्कि इसके सभी निबन्ध एक ही ग्रन्थ के विभिन्न अध्याय हैं और वे विभिन्न दिशाओं से एक ही विषय पर प्रकाश डालते हैं।पुस्तक हमें बताती है कि कविता की चर्चा केवल कविता की चर्चा नहीं है, वह समस्त जीवन की चर्चा है। ईश्वर, कविता और ..
सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष..
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‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन’ का निवास होता है। दुनिया में एक से बढ़कर एक बहुमूल्य चीजें हैं, परंतु इनमें एक चीज सबसे अनमोल है, और वह है—उत्तम स्वास्थ्य। मनुष्य जब-जब प्रकृति के विपरीत जाता है; अपना खान-पान तथा दिनचर्या संयमित नहीं रख पाता है, तब-तब बीमारियों की पकड़ में आ जाता है। बीमारियाँ हैं तो उ..
आध्यात्मिक मूल्यों से रहित जीवन कुछ ऐसा ही है, मानो हम कोई अनाथ बालक हों; हम स्वयं को असुरक्षित, प्रेम से रहित तथा अवांछित मान बैठते हैं। मूल्य हमारे ‘माता-पिता’ हैं। मनुष्य की आत्मा इसके द्वारा पोषित मूल्यों से सिंचित होती है। जब हम अपने मूल्यों के अनुसार जीते हैं तो इससे एक सुरक्षा व सहजता का भाव ..
यह पुस्तक 19वीं सदी में यूरोप में नई कविता का जो प्रवर्तन हुआ, उस पर विचार-विमर्श की एक व्यापक ज़मीन तैयार करती है। साथ ही, उसके परिप्रेक्ष्य में भारतीय कविता के विकास-क्रम में शुद्धता का पैमाना क्या रहा, और क्या होना चाहिए, इस पर भी अपना गम्भीर चिन्तन प्रस्तुत करती है। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि ..