धमाकों के शुरू होते ही सारी चहल-पहल ठहर गई थी। जो जहाँ था, वहीं रह गया। आतंकियों ने इतनी तेजी से पूरे होटल की अलग-अलग जगहों को निशाना बनाया था कि किसी को कुछ सोचने-समझने का मौका ही न मिला। सुरक्षा-कर्मचारियों ने फिर भी बड़ी मुस्तैदी से अपना काम सँभाला, और जितना संभव हो सका, मेहमानों को उनके कमरों मे..
जिंदगी में कभी-कभी ऐसा दौर आता है जब तकलीफ गुनगुनाहट के रास्ते बाहर आना चाहती है । उसमे फंसकर गेम-जाना और गेम-दौरां तक एक हो जाते हैं । ये गजलें दरअसल ऐसे ही एक दौर की देन हैं । यहाँ मैं साफ़ कर दूँ कि गजल मुझ पर नाजिल नहीं हुई । मैं पिछले पच्चीस वर्षों से इसे सुनता और पसंद करता आया हूँ और मैंने कभी ..