नन्द चतुर्वेदी हिन्दी के उन विरल कवियों में हैं जिन्होंने अपनी कविता को अपने जीवन-कर्म से जोड़कर सार्थक बनाया है। वे चिन्तन के स्तर पर समाजवादी रहे तथा उन्होंने अपने कवि-कर्म को समाज में व्याप्त ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए समर्पित किया। उनकी सम्पूर्ण कविता तथा इतर लेखन सामान्य जन के बेहतर जीवनयापन के..
वर्ष 2013-17 के बीच बिहार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन को टूटते-बनते देखा। इन दो बड़े राजनीतिक विखंडनों का शासन, समाज और अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा दुष्प्रभाव पड़ा, यह तो शोध का विषय है, लेकिन इतना तय है कि गठबंधन राजनीति के कई-कई पाटों के बीच कोई अमृत कोश अक्षुण्ण रहा, जिससे ..
इस किताब की प्रमुख कोशिश निराला को उनकी अपनी भूमि पर देखने और समझने की है, इस आस्था के साथ कि यह अपने आप को भी समझने की शुरुआत है, अपनी परम्परा और अपनी परम्परा की आधुनिकता को।जिस दुनिया में खड़े होकर आज हम निराला की परम्परागत आधुनिकता को देखते हैं, वह उनकी मूल्यचेतना की सार्थकता और प्रासंगिकता की ..
भारत में बारह में से ग्यारह गर्भपात ग़ैरक़ानूनी होते हैं, सन् 2001 की जनगणना के अनुसार देश के सबसे शिक्षित और सम्पन्न राज्यों में, प्रति हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले स्त्रियों की संख्या में, ख़ासकर 0–5 के आयु वर्ग में, काफ़ी गिरावट आई है; और, भारतीय परम्पराएँ जहाँ प्रजनन और मातृत्व को पवित्र करार देती ..
स्व. धर्माराव जी की तीन रचनाएँ ‘पेल्लिदानि पुट्टुपूर्वोत्तरालु’, सन् 1960 (विवाह-संस्कार : स्वरूप एवं विकास), ‘देवालयालमीद बूतु बोम्मल्य ऐंदुकु’, सन् 1936 (देवालयों पर मिथुन-मूर्तियाँ क्यों?) तथा ‘इनप कच्चडालु’, सन् 1940 (लोहे की कमरपेटियाँ) तेलगू-जगत में प्रसिद्ध हैं। इन रचनाओं में प्रस्तुत किए गए ..