मिथिलेश्वर की ये लम्बी कहानियाँ शोषण, अन्याय, अत्याचार, अन्धविश्वास और सर्वग्रासी भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील रचनाकार मन की तीखी प्रतिक्रियाएँ हैं, जिनके माध्यम से वह इन सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक प्रतिकूल वातावरण तैयार करने की चेतना जाग्रत करते हैं। इस तरह उनकी कहानियाँ कथा-सूत्रों एवं चरित्र..
“महात्मा गाँधी अपने समय में ही नहीं हमारे समय में भी एक प्रतिरोधक उपस्थिति हैं : उनका बीसवीं शताब्दी के विचार, राजनीति और सामाजिक कर्म पर गहरा प्रभाव पड़ा। इन दिनों उनका बहुत बारीक़ पर अचूक अवमूल्यन करने का एक अभियान ही चला हुआ है। इस सन्दर्भ में उनकी मृत्यु पर लिखा गया यह हंगेरियन नाटक, जो सीधे हिन..
मृत्यु के बाद क्या होता है, इससे कहीं अधिक सार्थकता एवं प्रासंगिकता इस तथ्य की है कि मृत्यु से पहले के तमाम वर्ष हमने कैसे जिये हैं। मन-मस्तिष्क में समाये अतीत के समस्त संग्रहों, दुख-सुख के अनुभवों, छवियों, घावों, आशाओं-निराशाओं और कुंठाओं के प्रति पूर्ण रूप से मरे बगैर हम जीवन को कभी ताज़ी-नूतन आँखो..
वरिष्ठ बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी का यह लघु उपन्यास ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर रचा गया है, लेकिन कवि वन्द्यघटी गाईं के जन्म और मृत्यु का इतिहास पूर्णतः लेखिका की अपनी मानस-कथा है। कोई ऐतिहासिक कथा नहीं। लेखिका ने इसके माध्यम से एक ऐसे युवक के प्रेम और जिजीविषा की अनूठी कहानी रचने की कोशिश की है जो अपन..
वन की यात्रा वास्तव में कठिन है। एक व्यक्ति अपने कॅरियर के शिखर पर पहुँचने तक कई मील के पत्थर पार कर चुका होता है। रवीन्द्र किशोर सिन्हा के लिए जीवन ‘कर्म ही पूजा है’। नियति को आकार देने के लिए भगवान् सभी के लिए गुरु को भेजते हैं, लेकिन कुछ ही ऐसे भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए..
मृत्यु जीवन का अटल सत्य है; यह अवश्यंभावी है। काल को जीतना लगभग दुर्लभ एवं असंभव है। इसलिए जीव मृत्यु के भय में रहता है। अनगिनत-अनजाने प्रश्न और शंकाएँ उसके मन-मस्तिष्क को जकड़े रहती हैं। विज्ञान लेखक श्री राजेंद्र तिवारी ने गहन शोध और अध्ययन करके जटिल व दुरूह ‘मृत्यु’ के बारे में विवेचना की है।
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यह पुस्तक अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक खुशवन्त सिंह की पुस्तक ‘डेथ एट माई डोरस्टेप : ओबिट्युअरीज़’ का अनुवाद है जिसमें उन्होंने कई महान हस्तियों को श्रद्धांजलि देते हुए मृत्यु के विषय में अपना नज़रिया व्यक्त किया है।पुस्तक के पहले खंड में उन्होंने दलाई लामा एवं आचार्य रजनीश के मृत्यु के बारे में विचारों..
‘मृत्युंजयी ऊधम सिंह’ अपने ढंग के अनूठे रचनाकार जियालाल आर्य का उपन्यास है, जिसे शहीद ऊधम सिंह का ज़िन्दगीनामा कहा जा सकता है। ऊधम सिंह के बचपन से लेकर उनकी शहादत तक की कहानी यहाँ क़िस्सागोई शैली में बयान की गई है।शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के संगरूर जनपद के सुनाम गाँव में हुआ थ..