‘दर्द जो सहा मैंने...’ आशा आपराद की आत्मकथा है। ‘एक भारतीय मुस्लिम परिवार’ में जन्मी ऐसी स्त्री की गाथा जिसने बचपन से स्वयं को संघर्षों के बीच पाया। संघर्षों से जूझते हुए किस प्रकार आशा ने शिक्षा प्राप्त की, परिवार का पालन-पोषण किया, अपने घर का सपना साकार किया—यह सब इस पुस्तक के शब्द-शब्द में व्यंजि..
‘देखा मैंने’ लेखक हसमुख शाह के जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज तो है ही, साथ ही वह उनकी जीवन-दृष्टि और जीवन का अवलोकन का भी एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। महत्त्वपूर्ण इसलिए कि लेखक हसमुख शाह कदाचित् अकेले ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने देश के तीन प्रधानमंत्रियों के कार्यालय में उच्च पद पर कार्य करने का सौभाग्..
हिन्दी के ज़्यादातर पत्रकारों के यात्रा-वृत्तान्त आम तौर पर रपट होते हैं। उनके केन्द्र में सिर्फ़ तथ्य और विवरण होते हैं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और सांसद हरिवंश के इन यात्रा-विवरणों में तथ्यों के साथ-साथ संवेदना और मानवीय प्रसंगों को भी बख़ूबी पिरोया गया है। इसी के चलते उनकी ये पत्रकारीय रपटें साहित्य..
डॉ. जगदीश अग्रवाल प्रवासी भारतीय संघ से जुड़े हैं। विदेशों में रह रहे भारतीय के भीतर भी यहाँ के तीज-त्योहार, यहाँ के संस्कार, यहाँ के रीति-रिवाज, यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, पक्षी जीवित रहते हैं। विदेशों में बसने के बाद भी रिश्तों की नफ़ासत, रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धताएँ बदल नहीं पातीं! कह सकते हैं कि प..
अपनी मौलिक सूझबूझ और नज़रिये को लेकर लगातार चर्चित तथा विवादास्पद रहने वाले कमलेश्वर की बातें रोचक भी है और पाठकों को अपने साथ अतीत व भविष्य में बहा ले जाने का मादूदा भी रखती है। उम्र की एक खास दहलीज पर पैर रखते ही आदमी को अचानक बीते दिन घेरने लगते है, यादों के धुंधले अक्स साफ दिखने लगते है और बेहद ..
इस संकलन की कहानियाँ नारी के उस मनोजगत को अभिव्यक्त करती हैं जिसमें बदलाव की एक प्रक्रिया निरन्तर चल रही है और अपने निर्णय ख़ुद लेने की दिशा में बढ़ती हुई वह यह भी साबित कर रही है कि स्त्रियाँ केवल भावनाओं और संवेदनाओं की प्रतिमूर्ति ही नहीं होतीं, वे समाज में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने में समर्थ है..
बीसवीं सदी के आख़िरी वर्ष भारतीय सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में साम्प्रदायिकता और जाति के उभार के वर्ष भी रहे हैं। समय के इस मोड़ पर हमने अचानक पाया कि जैसे आधुनिकता और प्रगतिशीलता के मूल्य सहसा हमारा साथ छोड़ गए और हम विकल होकर धर्मों और जातियों की शरण ढूँढ़ने लगे। इसी प्रक्रिया में हमने असहिष्णुता ..
स्वतंत्रता मिलने के बाद देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई। प्रकारांतर में अखबारों की भूमिका लोकतंत्र के प्रहरी की हो गई और इसे कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के बाद लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाने लगा।
कालांतर में ऐसी स्थितियाँ बनीं कि खोजी खबरें अब होती नहीं हैं; मालिकान सिर्फ पैसे क..
आकारों, बिन्दुओं और रंगों के साथ अपने देखे और महसूस किए गए की सबसे भीतरी और अमूर्त भित्ति को चित्रित करने तथा द्रष्टा को इसके माध्यम से अपने अन्तस की यात्रा के लिए प्रेरित करनेवाले चित्रकार सैयद हैदर रज़ा के जीवन और रचना का यह बहुत निकट से देखा गया विवरण है।यह और विशेष इसलिए है कि इसे हमारे समय ..