यह कथा-कृति उपन्यास की सारी सीमाओं और लालचों को उलट-पुलट देती है। चरित्रों के टकराव से कथा का विकास—यह जो उपन्यास-लेखन की आदत बन चुकी है, यहाँ इस आदत से लगभग इनकार है। फिर भी यह कथा-कृति एक उपन्यास ही है। इसमें गद्य और वृत्तान्त का एक अजब संयोजन है, जहाँ से ढाँचागत वर्जनाएँ समाप्त होती हैं और कथा का..
ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फ़िशर की पुस्तक ‘कला की ज़रूरत’ कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की ज़रूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की ज़रूरत क्यों होती है? आख़िर वह कौन-सी ब..