आदमी, बैल और सपने' की ज़मीनी संघर्ष-कथाओं से चलकर सामाजिक बदलावों के चौकन्ने दर्शक रामशरण जोशी आज हिन्दी के उन विरल पत्रकारों में हैं जो 'विकसित' होकर 'एक्टिविस्ट-समाजशास्त्री' के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं। उनकी 'समाज-समीक्षा' किताबी अध्ययन और कमराबन्द शास्त्रीय चिन्तन से नहीं, परिवर्तनकामी सामाज..
स्वतंत्रता के बाद भारतीय स्त्री की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है। बहुत थोड़े पैमाने पर ही सही, लेकिन इक्कीसवीं सदी की स्त्री-छवि बड़ी तेज़ी से आकार ग्रहण कर रही है। और, हम उम्मीद कर सकते हैं कि नई सदी में वह भारतीय समाज की एक समर्थ और स्वतंत्र इकाई होगी।यह आज भी नहीं कहा ..
‘‘वह जंगल जो दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता था और जो पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को समेटता हुआ महाराष्ट्र तक फैला है, लाखों आदिवासियों का घर है। मीडिया ने इसे ‘लाल गलियारा’ या ‘माओवादी गलियारा’ कहना शुरू कर दिया है। लेकिन इसे उतने ही सटीक ढंग से ‘अनुबन्..
इस पुस्तक में आजकल चल रहे बहस के मुद्दों पर लेख संकलित है। ये मुद्दे लम्बे समय से बने रहे हैं, किन्तु केन्द्र में अभी आए हैं। 2014 से पहले राजनीति पर समाज हावी रहता था, उसके बाद समाज पर राजनीति हावी हो गई है। इसका आरम्भ आपातकाल के दौरान ही हो गया था पर वर्चस्व अब बना है। जब समाज हावी था, तब समाजवाद ..
भारतीय साहित्य और संस्कृति पर मैक्स मूलर के अगाध ज्ञान को देखते हुए इंग्लैंड की सरकार ने उन्हें 1882 में आई.सी.एस. पास हुए अँग्रेज़ युवकों के प्रशिक्षण के दौरान भारतीय धर्म, साहित्य और संस्कृति पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया, ताकि ये भावी प्रशासक भारत की आत्मा को उचित ढंग से समझ सकें। इस अवस..
देश की जिन गम्भीर समस्याओं पर मुख्यधारा का मीडिया ख़ामोश रहता है और सरकार उदासीन, उनमें बँधुआ मज़दूरों की समस्या भी एक है। सरकारी घोषणाओं में यह समस्या ख़त्म हो चुकी है और मीडिया के लिए इसमें सनसनी नहीं रही। लेकिन समस्या अभी जहाँ की तहाँ है। 1975 में राष्ट्रपति के एक अध्यादेश के ज़रिए औपचारिक तौर पर..
मानवाधिकारों की अवधारणा वर्तमान सामाजिक विमर्शों में एक महत्त्वपूर्ण तथा सार्वदेशिक मूल्य का स्थान रखती है। 1215 ई. में पारित मैग्नाकार्टा के आरम्भिक स्वरूप से चलकर आज यह अवधारणा मौजूदा विश्व–सभ्यता का ठोस घटक बन चुकी है। इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय संस्कृति में इस घटक की पहचान करना और यह देखना है ..
आज के भारत की राजनीति का संभवतः सर्वश्रेष्ठ गैरऔपन्यासिक परिचय...-माइकल फुट, इवनिंग स्टैण्डर्ड भारत और उसकी समसामयिक परिस्थितियों पर कोई और किताब ही इससे अधिक गहनता के साथ बेहतर रौशनी डाल सके | - इयान जैक, ऑब्जर्वर इस शानदार किताब का मकसद कोई भविष्यवाणी करने के बजाय यह बताना है कि भारत अपनी मौजूदा ह..
गीतेश शर्मा जिन्हें हम उनकी अत्यन्त लोकप्रिय पुस्तक ‘धर्म के नाम पर’ के लिए जानते हैं, देश के उन कुछेक चिन्तकों में थे जिन्हें धर्म और ईश्वर की समाज तथा मनुष्य-विरोधी अवधारणाओं पर ख़ामोश रहना कभी स्वीकार नहीं हुआ। आज जब मुख्यधारा के प्रगतिशील चिन्तन ने सर्वधर्म समभाव के नाम पर हर तरह के धार्मिक अनाच..
इस पुस्तक में भूगोल विषय की संकल्पनात्मक, सैद्धान्तिक एवं क्रियाविधिक स्वरूप का विवेचन एवं विमर्श मुख्य रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल के सन्दर्भ में किया गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध भौगोलिक चिन्तन के विकास में मील का पत्थर है, क्योंकि इसके बाद विश्व के राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक क्षितिज प..
वर्तमान भारत के सम्मुख जो ज्वलन्त प्रश्न हैं, उनमें से एक है नक्सलवाद। नक्सलवाद का जन्म अनेक सामाजिक कारणों से हुआ है और वह आज अतिवाद का पर्याय-सा समझा जा रहा है। ‘भोजपुर : बिहार में नक्सलवादी आन्दोलन’ पुस्तक दक्षिण बिहार के भोजपुर ज़िले पर केन्द्रित है। इसी ज़िले के सहार ब्लॉक में एकवारी गाँव है, ज..
लगभग 2500 वर्ष पहले, ईसा पूर्व चौथी सदी में, जब विश्व के अधिकांश भागों की सभ्यता अपनी शैशवावस्था में थी, चाणक्य नाम के एक विद्वान और विचारक ने ‘अर्थशास्त्र’ शीर्षक से एक ग्रन्थ लिखा, जो संसार में राजनीति पर सर्वाधिक गहन और सघन रचनाओं में से एक है।‘अर्थशास्त्र’ में लगभग 6000 श्लोक और सूत्र हैं। यहा..