चंदायन हिजरी 781 (1379 ई.) की रचना है। इसकी रचना मौलाना दाऊद ने फीरोज़शाह तुगलक के युग में की थी। चंदायन काव्य की दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चंदायन की कथा का मूल स्रोत लोरिकी, लोरिकायन या चनैनी है। ये तीनों नाम एक ही लोक महाकाव्य के हैं। लोरिकी को ह..
चंदायन हिजरी 781 (1379 ई.) की रचना है। इसकी रचना मौलाना दाऊद ने फीरोज़शाह तुगलक के युग में की थी। चंदायन काव्य की दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चंदायन की कथा का मूल स्त्रोत लोरिकी, लोरिकायन या चनैनी है। ये तीनों नाम एक ही लोक महाकाव्य के हैं। लोरिकी को..
भीष्म साहनी ऐसे कथाकार थे जिन्हें किसी आन्दोलन ने न कभी विचलित किया, न प्रेरित किया। कला और यथार्थ के साथ उनका अपना निजी रिश्ता था, जिसे उन्होंने आख़िर तक अक्षत बनाए रखा। जीवन, जीवन को चुनौती देनेवाले विद्रूप और उसे बल देनेवाले सौन्दर्यबोध की शाश्वत मौजूदगी, यही उनका संसार था।'डायन' का प्रकाशन 19..
महर्षि दयानन्द के सामने बड़ा सवाल था कि भारतीय संस्कृति के परस्पर-विरोधी तत्त्वों का समाधान किस प्रकार हो। उन्होंने देखा कि एक ओर जहाँ इस संस्कृति में मानव-जीवन और समाज के उच्चतम मूल्यों की रचनाशीलता परिलक्षित होती है, वहीं दूसरी ओर उसमें मानवता-विरोधी, समाज के शोषण को समर्थन देनेवाले, अन्धविश्वासों ..
स्वामी दयानंद सरस्वती का वास्तविक नाम मूलशंकर था। उनका जन्म धार्मिक विचारों के सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। सन् 1846 में केवल 22 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर-परिवार त्याग दिया था। इसके बाद उन्होंने संन्यास ग्रहण कर स्वामी विरजानंद की छत्रच्छाया में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की ।स्वामी दयानंद सरस्..
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती भारत के प्रख्यात समाज सुधारक, चिंतक और देशभक्त थे। वे बचपन में ‘मूलशंकर’ नाम से जाने जाते थे। महर्षि ने सभी धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़े शब्दों में खंडन किया और अपने महान् ग्रंथ ‘सत्यार्थप्रकाश’ में उनका विश्लेषण किया। बचपन की एक घटना ने उन्हें उद्वे..