आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का रचना-संसार वैविध्यपूर्ण और साहित्यिक व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे संस्कृत के शास्त्री थे, ज्योतिष के आचार्य। कवि, आलोचक, उपन्यासकार, निबन्धकार, सम्पादक, अनुवादक और भी न जाने क्या-क्या थे। वे पंडित भी थे और प्रोफ़ेसर भी, आचार्य तो थे ही। वे अपने समय के एक बहुत ही अच्छे व..
प्रबन्धन आत्म-विकास की एक सतत् प्रक्रिया है। अपने को व्यवस्थित-प्रबन्धित किए बिना आदमी दूसरों को व्यवस्थित-प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकता, चाहे वे दूसरे लोग घर के सदस्य हों या दफ़्तर अथवा कारोबार के। इस प्रकार आत्म-विकास ही घर-दफ़्तर दोनों की उन्नति का मूल है। इस लिहाज़ से देखें, तो प्रबन्धन क..
‘आपदा’ (Disaster) एक ऐसी असामान्य घटना है, जो सीमित अवधि के लिए आती है, किंतु किसी भूभाग या देश की अर्थव्यवस्था को छिन्न-छिन्न कर देती है।
अव्यवस्थित तंत्र के बल पर आपदाओं का सामना नहीं किया जा सकता। पिछले कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के प्रयास किए जाते रहे हैं।
संप्रति आपदा प्रब..
आज हम जो कुछ भी हैं, उन्हीं के बनाए हुए है। यदि पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी न होते तो बेचारी हिन्दी कोसों पीछे होती, समुन्नति की इस सीमा तक आने का अवसर ही नहीं मिलता। उन्होंने हमारे लिए पथ भी बनाया और पथ-प्रदर्शक का भी काम किया। हमारे लिए उन्होंने वह तपस्या की है जो हिन्दी-साहित्य की दुनिया में बे..
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के अनन्य निबन्धकार हैं। साहित्यिक, शास्त्रीय और शैक्षिक दृष्टि से उनके निबन्धों का अध्ययन अनिवार्य है, पर उनके प्रतिनिधि निबन्धों का एक भी संकलन ऐसा नहीं है जो उनकी विधायिनी प्रतिभा का सम्यक् परिचय दे सके। इस परिप्रेक्ष्य में ‘आचार्य शुक्ल : प्रतिनिधि निबन्..
चापेकर बंधु--दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण हरी चापेकर तथा वासुदेव हरी चापेकर--तीनों भाइयों को क्रांतित्रयी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चापेकर बंधु पुणे के पास चिंचवड के निवासी थे और बाल गंगाधर तिलक को अपना गुरु मानते थे। आरंभ से ही उनके मन में भारत को विदेशी दासता से मुक्त कराने की दृढ़ भावना थी । स..
वर्तमान भारतीय समाज का अभिजात नागर मन दो हिस्सों में विभाजित है—एक में है पश्चिमी आधुनिकतावाद और दूसरे में वंशानुगत संस्कारवाद। इससे इस वर्ग के भीतर का द्वन्द्व पैदा होता है, उससे पूर्णता के बीच रिक्तता, स्वच्छन्दता के बीच अवरोध और प्रकाश के बीच अन्धकार आ खड़ा होता है। परिणामतः व्यक्ति ऊबने लगता है, ..
कविता बल्कि कला मात्र अपने आपमें एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है—चाहे उसकी विषय–वस्तु कुछ भी हो। स्पष्ट है कि इलियट के लिए धर्म किसी ‘आधि–प्राकृतिक सत्ता में विश्वास’ करना है जबकि आर्नाल्ड के लिए वह मानवमात्र को जोड़ने और जीवन को अर्थ प्रदान करनेवाली चीज़ है; बल्कि कह सकते हैं कि मानवमात्र के जुड़ाव का, संल..
मैने अपने दादाजी श्री शरतचंद्र बोस को कभी नहीं देखा। मेरे जन्म से छह वर्ष पूर्व ही उनका देहावसान हो चुका था। मुझे जो कुछ भी अपने पिताजी शिशिर कुमार बोस के विषय में याद है, वह बिल्कुल वैसा ही है जैसा वे स्वयं अपने पिताजी के विषय में याद करते थे, ‘‘जब मैं बहुत छोटा बच्चा था, तब से लेकर अंत तक मेरे पित..
भट्टजी की प्रमुख चिन्ता भारतेन्दु की ‘स्वत्व निज भारत लाह’ या देशवत्सलता ही नहीं, बल्कि मुल्क की तरक़्क़ी और देशत्वाभिमान भी था। उनकी चिन्ता थी कि देश की अस्मिता की रक्षा कैसे की जाए। देशत्व रक्षा का उपाय क्या है। एक ओर वे नई तालीम के पक्षधर थे, क्योंकि यह अन्ध धार्मिकता, काहिली और भेदभाव को दूर करत..
‘बंद कमरा’ एक स्त्री और पुरुष के अनूठे रिश्ते की कहानी है। कुकी एक गृहिणी है जिसकी ई-मेल के ज़रिये पाकिस्तान के एक कलाकार से जान-पहचान होती है और यह जान-पहचान आगे चलकर दोस्ती और फिर प्रेम में बदल जाती है। यह केवल स्त्री-पुरुष की प्रेम-कहानी ही नहीं है बल्कि परिवार, समाज और देश के आपसी रिश्तों की कहान..
अनामिका की कविताएँ कवि की प्रतिक्रियाओं से नहीं बनतीं, सदेह, चलते-फिरते-जीते लोगों के जीवन-संवाद से निकलती हैं। सड़कों-चौराहों-घरों-दफ़्तरों में जीवन की ज़िद में जुटी इच्छाओं और हताशाओं, उम्मीदों से रचा-बसा एक बड़ा मनुष्यरचित संसार उनकी कविताओं में सदेह दिखाई देता है।इस संग्रह में भी बहुत कम ऐसी कव..