रंगमंच के विविध पहलुओं पर रोशनी डालती विख्यात नाट्य-चिन्तक व निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर की यह पुस्तक उनकी पहली पुस्तकों की ही तरह हिन्दी में आधुनिक नाट्य-विमर्श की कमी को पूरा करती है।देवेन्द्र राज अंकुर गत कई दशकों से भारतीय रंगमंच और ख़ास तौर से हिन्दी थिएटर के साथ गहराई से जुड़े रहे हैं। नाटक..