किसी ने कहा था कि दुनिया के मज़दूरो, एक हो जाओ—खोने के लिए तुम्हारे पास अपनी ज़ंजीरों के अलावा कुछ भी नहीं है। कुमार अंबुज की ‘ज़ंजीरें’ उन असंख्य साँकलों का ज़िक्र करती हैं जिनसे हमारा समूचा चिन्तन, सृजन तथा समाज बँधा हुआ है और उन्हें वन्दनीय मानने लगा है, हालाँकि कुछ लोग आख़िर ऐसे भी थे जो अपनी-अ..
किसी के स्वस्थ व्यवहार और उपकार के प्रति समर्पण की सीमा तक पहुँची हुई ऐसी कृतज्ञता कि बचपन से चाकरी में रहनेवाला नौकर अपने हमउम्र स्वामि-पुत्र के परिवार में अगले जन्म में भी जन्म लेने और उस परिवार की चाकरी करने की अन्तिम आकांक्षा अन्तिम साँस लेते समय प्रकट कर रहा हो—यही है वह अन्तरधारा जो इस उपन्यास..
बीसवीं सदी का अन्तिम दशक कई तरह से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का साक्षी रहा। विश्व में समाजवाद के पतन के उपरान्त भारत में उदारीकरण के चलते कई नई चुनौतियाँ हमारी चेतना के समक्ष उपस्थित हुईं। बाज़ारवाद, मीडिया विस्फोट और सूचना तकनीकी के आगमन के कारण भाषिक-संवेदना के तार बिखरने लगे।इन परिस्थिति..
कथाकार मोहन राकेश के साथ बिताए अपने समय को लेकर अनीता राकेश के संस्मरणों की दो पुस्तकें हिन्दी पाठकों की प्रिय पुस्तकों में पहले से शामिल हैं—'चन्द सतरें और' तथा 'सतरें और सतरें'। उसी शृंखला में यह उनकी अगली पुस्तक है जिसे उन्होंने 'अन्तिम सतरें' नाम दिया है। इस पुस्तक में उन्होंने जितना अपने बीते स..
“इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की सम्भावना निहित होती है। अहिंसा में गाँधी की आस्था..
दर्शन के चिर प्रश्नों में मृत्यु के सवाल ने हर दौर के दार्शनिकों और विचारकों को व्याकुल किया है। लगभग सभी ने इसे समझने, इसकी व्याख्या करने और फिर जीवन-चक्र में इसकी भूमिका को जानने का प्रयास किया। लेकिन अन्तत: मृत्यु के रास्ते पर जाना पड़ा सबको ही। उन्हें भी जिन्होंने दिग-दिगन्त से अपनी ताक़त का लोहा..
सन् 1956 में तिब्बत का दरवाज़ा विदेशियों के लिए लगभग बन्द हो चुका था और राजनैतिक कारणों से भारत के साथ तिब्बत का सम्पर्क भी लगभग टूट चुका था। उन्हीं दिनों, बिना किसी तैयारी के, बिमल दे घर से भागे और नेपाली तीर्थयात्रियों के एक दल में सम्मिलित हो ल्हासा तक जा पहुँचे। उस समय उनकी उम्र मात्र पन्द्रह..
ओमप्रकाश वाल्मीकि भारतीय दलित साहित्य के सबसे बड़े हस्ताक्षर हैं। उनकी आत्मकथा, जूठन, जिसमें उन्होंने जातीय अपमान और उत्पीड़न के कई अनछुए सामाजिक पहलुओं पर रोशनी डाली है, दलित साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। 30 जून 1950 में उत्तर प्रदेश में जन्मे वाल्मीकि ने एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की जिसके द..
प्रथम और अंतिम मुक्ति' में जे. कृष्णमूर्ति की अंतर्दृष्टियों का व्यापक व सारगर्भित परिचय तथा उनमें सहभागिता का चुनौती-भरा निमंत्रण प्राप्त होता है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के विविध सरोकारों का समावेश इस एक पुस्तक में उपलब्ध है जो अंग्रेज़ी पुस्तक 'द फस्र्ट एंड लास्ट फ्रीडम' का अनुवाद है। इस पुस्तक क..
पुस्तक के आत्म-निवेदन में डॉ. कृष्ण मोहन प्रसाद सिंह लिखते हैं कि इस धार्मिक पुस्तक में भगवान की तीन महाशक्तियाँ—श्रीराधा, श्रीसीता और श्रीशिवा, चारों वेद, अठारहों पुराण, 108 उपनिषदों, वाल्मीकि एवं स्वामी तुलसीदास कृत रामायण के सात कांडों, गीता के 18 अध्यायों, ओंकार-परमात्मा की ध्वनि, धर्म-परमात्मा ..
हिंदी की व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। त्यागीजी ने अपने दो अन्य सहयात्रियों के साथ हिंदी-व्यंग्य को एक सुनिश्चित दिशा प्रदान की और उसे एक विधा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने में अप्रतिम योगदान दिया। इस व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी की व्यंग्य-दिशा पूर्णत: भिन्न ..
आज की प्रतियोगितावादी और मशीनी दुनिया में हमारे सामने अनेक नई समस्याएँ और प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इन्हीं में एक प्रमुख प्रश्न हमारी शिक्षा से भी सम्बन्ध रखता है, क्योंकि यही वह औज़ार है जो हमें लगातार असहिष्णु होती दुनिया में बेहतर मनुष्य बनाने में काम आ सकता है। आख़िर शिक्षा है क्या? उसका उद्देश्य..