कुशेरा के नेत्रोपचार करनेवाले गुरव बंधु हों, निःसन्तानों को सन्तान प्रदान करानेवाली पार्वती माँ हों, या एक ही प्रयास में व्यसनमुक्त करानेवाले शेषराव महाराज हों, थोड़ा-सा विचार करें, तो समझ में आता है कि लोग असहाय होते हैं। अतः वे दैववादी बनते हैं। इसी से अंधविश्वास का जन्म होता है। समाज जागरूक नहीं..