आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी उन विरल रचनाकारों में थे, जिनकी कृतियाँ उनके जीवन-काल में ही क्लासिक बन गईं। अपनी जन्मजात प्रतिभा के साथ उन्होंने शास्त्रों का अनुशीलन और जीवन को सम्पूर्ण भाव से जीने की साधना करके वह पारदर्शी दृष्टि प्राप्त की, जो किसी कथा को आर्ष-वाणी की प्रतिष्ठा देने में समर्थ होती है..