‘‘दिव्या विजय अंतर्मन के बीच बेहद सहजता के साथ उतरती हैं और सधे हुए कौशल के साथ अंतर्द्वंदो के क्षणों को चुनती हैं। उनकी यह सहजता और उनका यह सधाव चकित करता है। इन कहानियों के मर्म की अनुगूँजें लम्बे समय तक पाठकों के भीतर बनी रहती हैं और भरोसा दिलाती हैं कि आने वाले समय में दिव्या विजय अपनी खास पहचान..
‘बंद कमरा’ एक स्त्री और पुरुष के अनूठे रिश्ते की कहानी है। कुकी एक गृहिणी है जिसकी ई-मेल के ज़रिये पाकिस्तान के एक कलाकार से जान-पहचान होती है और यह जान-पहचान आगे चलकर दोस्ती और फिर प्रेम में बदल जाती है। यह केवल स्त्री-पुरुष की प्रेम-कहानी ही नहीं है बल्कि परिवार, समाज और देश के आपसी रिश्तों की कहान..
स्कूल के आखिरी और काॅलेज के शुरुआती वर्षों का यादगार और अलमस्त समय! जब स्कूल के अनुशासन से छूटे और जवानी की दहलीज़ पर खड़े छात्र अपनी आज़ादी और महत्वाकांक्षाओं की उड़ान को परखने लगते हैं। जीवन के कठोर यथार्थ से बेपरवाह ये समां होता है दोस्त बनाने का, सपने देखने का। भिलाई के एक स्कूल में पढ़ने वाले क..
जीवनसाथी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत जीवन-संध्या के समय होती है। उम्र की ढलान का एकाकीपन जीवन का सबसे कठिन दौर होता है। 'कंकड़ी' के नायक आनन्द सिन्हा एक विधुर हैं। पत्नी की मृत्यु के बाद वे जीवन में रीतापन अनुभव करते हैं जिसे दूर करना उन्हें अत्यंत प्रेम करने वाले परिवार के लिए भी संभव नहीं। प्रकृति के सान..
वैशाली प्यार करना चाहती है। वह सीमाओं के आगे हार नहीं मानना चाहती। पलक भी प्यार करना चाहती है और उसे ‘लव जिहाद’ तक से परहेज नहीं। उसकी ही तरह, इस कहानी की सारी औरतें प्यार करना चाहती हैं, पाना चाहती हैं। उनके प्यार में खूबसूरती है, सपने हैं, ताकत है। लेकिन क्या वे उस ज़हर के आगे टिक पाएंगी जो इस समाज..
हिन्दी साहित्य में शायद यह पहला उपन्यास है जो दक्षिण अफ्रीका की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। इस उपन्यास में कथानक की रोचकता को सुरक्षित रखते हुए लेखिका ने एक ऐसे रंगभेदी समाज से हमें परिचित कराया है जहाँ कष्टसाध्य गुलामी तथा दुर्व्यवहार के दर्द की एक ख़ामोशी की गूँज हर समय सरसरती है।..
‘‘अनुराग को लगा कि जैसे ज़िन्दगी लेबंटी-सी है। चाह है। गोल्डन। थोड़ी खट्टी। थोड़ी मीठी। एक बार जो स्वाद मिला वो दुबारा ढूँढ़ते रहो। वहीं बनाने वाला भी स्वयं दुबारा नहीं बना पाता, ठीक वैसी ही चाह। चाह में किसी को कम दूध, किसी को ज़्यादा, किसी को मीठी, किसी को फीकी। बड़े लोग ब्लैके परेफ़र करते हैं। पत..
26 साल की छोटी उम्र में निकिता सिंह 10 उपन्यास लिख चुकी हैं जिसमें से कुछेक बैस्टसैलर हैं। आज के जवान लड़के लड़कियों का जिन चुनौतियों से सामना होता है, उसे वह बखूबी समझती हैं और शब्दों में ऐसे उतारती हैं कि सीधा पाठकों के दिलों में घर कर जाता है। यही कारण है कि युवाओं में वे बेहद लोकप्रिय हैं, विशेष..
एक परिवार को माँ के योगदान और बलिदान का एहसास तब होता है जब माँ उनके बीच नहीं रहती। ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है इस उपन्यास के कोरियन परिवार को, जब एक दोपहर स्टेशन की भीड़-भाड़ में माँ रेलगाड़ी में नहीं चढ़ पाती और प्लेटफार्म पर ही छूट जाती है। यहीं से शुरू होती है माँ को तलाशने की इस परिवार..
गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित लेखिका कमल कुमार का उपन्यास ‘मैं घूमर नाचूँ’ राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित है। आज के आधुनिक परिवेश में भी राजस्थान में रूढ़िवादिता और अंधविश्वास अपने चरम पर है। इसी को लेखिका ने अपने उपन्यास का आधार बनाया है। इस उपन्यास की कहानी ‘पैराडाइम शिफ्ट’ क..
चार दोस्त.... चार ज़िन्दगियाँ.... एक फ़ैसला कॉलेज में पढ़ रहे चार दोस्त मुम्बई के एक फ्लैट में इकट्ठे रहते हैं। वरुण लापरवाह और कुछ सुस्त स्वभाव का है, लेकिन है बहुत ही प्यारा, अहाना साहसी है और कई बार बिना सोचे-समझे काम करती है, मालविका ‘सेल्फी-क्वीन’ है और गरिमा इन सबमें चुपचाप रहने वाली सबसे गम्भीर ..
नैटेली अपनी ज़िन्दगी से बेहद खुश है। अपने काम में सफल है और अपने पति के साथ सुखी जीवन बिता रही है। लेकिन अचानक जब उसका पति एक कार दुर्घटना में मारा जाता है तो उसकी हँसती-खेलती दुनिया एकदम वीरान और उदास हो जाती है। कई बरस बीत जाते हैं, और फिर एक दिन, यूँ ही बिना कुछ सोचे-समझे वह अपने साथ काम कर रहे म..