साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार हरिशंकर परसाई हिन्दी के सबसे समर्थ व्यंग्यकार हैं। पैनी दृष्टि और चुटीली भाषा उनके अचूक औज़ार हैं। जीवन, समाज और राजनीति में व्याप्त सभी बीमारियों और बुराइयों की पहचान वे किसी कुशल ‘सर्जन’ की तरह करते हैं। ‘अपनी-अपनी बीमारी’ की व्यंग्यपरक कहानियों में कुछ ऐ..
प्राचीनकाल से ही भारतीय शैक्षिक प्रक्रियाओं में एकाग्रता-विकास को बहुत महत्त्व दिया गया। आश्रमों में आचार्य अपने शिष्यों को विविध योगाभ्यासों के जरिए एकाग्रता के गुर सिखाते थे। आधुनिक शिक्षा-प्रणाली में एकाग्रता-विकास के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी गई है। हमने बच्चों के ऊपर सूच..
जब कृष्णा पत्रकार बनने का फ़ैसला करती है तो अपना औरत होना और हिन्दी समाचार एजेंसी में काम करना, यही दो परेशानियाँ उसके सामने हैं। जैसाकि उसके मुन्नू चाचा कहते हैं उसका यह फ़ैसला भले ही उसे उसकी निराशा से क्षणिक मुक्ति दे, लेकिन आख़िरकार यह उसे बर्बाद कर देगा। मुन्नू ’चा के मन में इस बारे में कोई शक..
अपनी ख़बर लेना और अपनी ख़बर देना—जीवनी साहित्य की दो बुनियादी विशेषताएँ हैं। और फिर उग्र जैसे लेखक की ‘अपनी ख़बर’। उनके जैसी बेबाकी, साफ़गोई और जीवन्त भाषा-शैली हिन्दी में आज भी दुर्लभ है। उग्र—पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’—हिन्दी के प्रारम्भिक इतिहास के एक स्तम्भ रहे हैं और यह कृति उनके जीवन के प्रारम्..
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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 176P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20.5 X 13 X 1..
विज्ञापन की चकाचौंध दुनिया में जितना हिस्सा पूँजी का है, शायद उससे कम हिस्सेदारी स्त्री की नहीं है। इस नए सत्ता-प्रतिष्ठान में स्त्री अपनी देह और प्रकृति के माध्यम से बाज़ार के सन्देश को ही उपभोक्ता तक नहीं पहुँचाती, बल्कि इस उद्योग में पर्दे के पीछे एक बड़ी ‘वर्क फ़ोर्स’ भी स्त्रिायों से ही बनती है।..
जनजीवन के दैनिक प्रसंगों में शामिल होने का दावा करनेवाले, लेकिन हक़ीक़त में अभिजात काव्याभिरुचि की प्रतिष्ठा के लिए फ़िक्रमन्द, तमाम रूप-विकल कवियों में लगभग विजातीय की तरह दिखनेवाले अष्टभुजा शुक्ल की कविता का यथार्थ दरअसल भारतीय समाज के उस छोर का यथार्थ है, जिस पर ‘बाज़ार’ की नज़र तो है, लेकिन जो ब..