कश्मीर का प्राकृतिक सौन्दर्य जितना विश्वविख्यात है, उतना ही उसकी साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत भी मूल्यवान और सर्वविदित है। ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ घाटियों के बीच में भास्वरित होती झीलें, झाड़ियों से भरे जंगल फूलों से घिरी पगडण्डियाँ केसर-पुष्पों से महकते खेत, कल-कल करते झरने, बर्फ से आच्छादित पर्वतमाला..
सत्यप्रकाश मिश्र हिन्दी आलोचना में साहित्यिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सन्दर्भों एवं उनसे निःसृत समाजवादी मान-मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में किसी भी कृत और प्रवृत्ति का मूल्यांकन करनेवाले एक सेक्यूलर आलोचक थे। समकालीन हिन्दी आलोचना भाषा को उन्होंने जो आवाज़ दी, वह अपने आप में अकेली और अनोखी है। इस आवाज़ ..
प्रस्तुत पुस्तक ‘लोक-संस्कृति और इतिहास’ के प्रथम लेख में इतिहासकारों का लोक-संस्कृति से कटाव, बौद्धिक-ज्ञान और जन-ज्ञान के बीच निरन्तर चौड़ी और गहरी होती खाई की समस्या पर विचार व्यक्त किए गए हैं।दूसरे लेख में पूर्वी लोक-चेतना में राष्ट्रवाद के प्रतिदर्श का अध्ययन और अखिल भारतीय राष्ट्रवाद से इसके..
लोक-साहित्य लोक-संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। यह इसका अविच्छिन्न अंग अथवा अवयव है। जब से लोक-साहित्य का भारतीय विश्वविद्यालयों में अध्ययन तथा अध्यापन के लिए प्रवेश हुआ है, तब से इस विषय को लेकर अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना हुई है। प्रस्तुत ग्रन्थ को छह खंडों तथा 18 अध्यायों में विभक्त क..
प्रस्तुत पुस्तक ‘लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद’ में शोध को एक ढाँचा प्रदान करने के लिए तीन लोक-कवियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो लोक-चेतना के तीन कालखंडों में प्रतिनिधि हैं। लोकसंस्कृति के कुछ अन्य रूपों का उपयोग इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति में किया गया है। इसमें सन् 1857 के ग़दर की झलक भी शामिल ह..
प्रस्तुत पुस्तक OBJECTIVE भारत का इतिहास, कला एवं संस्कृति UPSC, State PSCs एवं अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए लिखी गई है। यह पुस्तक चैप्टर-वाइज एवं टॉपिक-वाइज रूप में लिखी गई है। इसमें प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत, आधुनिक भारत तथा कला एवं संस्कृति से संबंधित वस्तुन..
समसामयिक संवाद में परम्परा एक केन्द्रीय बिन्दु बन गई है। संस्कृति की पुनर्रचना, राजनीतिकरण और सैनिकीकरण व्यवस्था के लिए गम्भीर प्रश्न और भविष्य के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। इतिहास-बोध का मिथकीकरण अनेक वैचारिक विकृतियाँ उत्पन्न कर रहा है। साहित्य और संचार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से परम्परा, संस..
समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक क्षेत्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. पूरनचन्द्र जोशी की यह कृति भारतीय सामाजिक परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में कुछ बुनियादी सवालों और समस्याओं पर किए गए चिन्तन का नतीजा है। चार भागों में संयोजित इस कृति में कुल पन्द्रह निबन्ध हैं, जो एक ओर आधुनिक आर्थिक विकास और स..
यह पुस्तक पूर्व-मध्यकालीन समाज एवं संस्कृति के स्वरूप पर प्रकाश डालती है। गुप्तोत्तरकाल में सामाजिक संकट के कारण भूमि अनुदानों में वृद्धि हुई और व्यापार और मुद्रा-प्रयोग की कमी तथा प्राचीन नगरों के पतन के कारण यह प्रथा बढ़ चली। इस पुस्तक में इस तथ्य को उजागर किया गया है। इसके साथ ही भारतीय सामन्तवाद ..
‘पूर्वी उत्तर प्रदेश की भौतिक संस्कृति’ (प्रागैतिहासिक युग से उत्तर मुग़ल युग तक) नामक कृति एक साधक अध्येता की अनुसन्धान-यात्रा की फलश्रुति है। पुस्तक में लेखनी ने प्रागैतिहासिक युग से लेकर लगभग अट्ठारहवीं शती तक मानव अधिवास के प्राचीन क्षेत्र वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश की भौतिक संस्कृति के विविध प..
‘प्राचीन अयोध्या का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन’, शोध-प्रबन्ध के दस अध्यायों में अयोध्या की उन राजनैतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों की पौर प्रभा उकेरी गई है, जो उसे इतिहास में शतियों से अमर बनाई हुई है।अयोध्या से प्राप्त सिक्के, शिलालेख, मृद्भांड, पाषाण शिल्प, ताम्रफलकाभिलेख और स्मारक हमें जहाँ अत..